विश्वासघात का विष,

विश्वासघात का विष, ..The toxin of  Betrayal 

* यही सब 

देखना था, क्या  

भारत से 

इंडिया बन कर ? 

क्या इसी 

स्वछंदता का 

नाम है आज़ादी, 

* या 

काले अंग्रेजों ने 

65 वर्ष में 

लिख दी 

सदाचार की बर्बादी ? 

* इंडिया की चमक दमक में 

मेरा भारत 

कहाँ पे खोया है ? 

शर्मनिरपेक्ष माली ने, 

चन्दन के मेरे 

नन्दनवन में, 

धोखे से 

नागफनी क्यों बोया है ? 

* वे

मर्यादाएं हैं मिटा रहे,

संसाधन सारे लुटा रहे,

फिर भी

क्यों ऑंखें बंद रखे,

लाचार हम

सभी लगते हैं ?

* अब, प्रश्न उठा,

आखिर कब तक…?,

प्रश्न स्वयं से पूछो जी,

जब चोर बनाये

थानेदार,

व्यवस्था है

सारी ही बीमार,

रक्त रंजित

इस तन के आखिर,

कितने घाव गिनाओगे ?

* हर पल खाये हैं घाव सदा,

पर हम न थके,

तुम गिन गिन के थक जाओगे !

* यह घाव तो

सह ही लेंगे हम,

झूठे आश्वासन

दे देकर;

विश्वासघात

फिर करके तुम,

नए घाव दे जाओगे !

* गले सड़े फल

लाने वाले की

वाह वाह से क्या जाने;

उपहास कहें

या भ्रम का जाल

इसे मानें ?

** विश्वासघात का विष

अभी कितना और पिलाओगे ?

अभी कितना और पिलाओगे ?

“अंधेरों के जंगल में, दिया मैंने जलाया है |

इक दिया, तुम भी जलादो; अँधेरे मिट ही जायेंगे ||” युगदर्पण

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मैं दिनकर तो नहीं (किन्तु) दिनकर की दिनकरता का वारिस तो हूँ; तथा राष्ट्रवाद के अकालग्रस्त खेतों में बारिश सा तो हूँ; नभ से धरती के पृष्ठों पर, राष्ट्र भक्ति की कलम उठा; अपने अंतर की ज्वाला से अंगारों को शब्दों में ढाल; नव क्रांति की कविता रच कर; मैं नाम तुम्हारे कर दूंगा! ऐसे फिर भारत का सोया, मैं भाग्य बदल कर रख दूंगा!!|| यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था, आज भी इसमें वह गुण, योग्यता व क्षमता विद्यमान है! आओ मिलकर इसे बनायें। जागते रहो, जगाते रहो ! जागोगे नहीं, तो मिट जाओगे, अरे हिन्दोस्तान वालों, तुम्हारी दास्ताँ तक भी न होगी दस्तानों में ! जागते रहो- अँधेरे के साम्राज्य से बाहर का एक मार्ग….see more… remain connected to युगदर्पण मीडिया समूह YDMS. yugdarpan.com . हम सच को छुपाते नहीं, छुपाये जा रहे सच को प्रकाश में लाते हैं -संपादक युग दर्पण - तिलक रेलन संपादक, 9911111611 …
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